ज़रा इतना बता दे कान्हा, तेरा रंग काला क्यों
तू काला होकर भी जग से निराला क्यों
मैंने काली रात को जन्म लिया
और काली गाय का दूध पीया
मेरी कमली भी काली है
इस लिए काला हूँ
सखी रोज़ ही घर में बुलाती है
और माखन बहुत खिलाती है
सखिओं का दिल काला
इस लिए काला हूँ
मैंने काली नाग पर नाच किया
और काली नाग को नाथ लिया
नागों का रंग काला
इस लिए काला हूँ
सावन में बिजली कड़कती है
बादल भी बहुत बरसतें है
बादल का रंग काला
इसलिए काला हूँ
सखी नयनों में कजरा लगाती है
और नयनों में मुझे बिठाती है
कजरे के रंग काला
इस लिए काला हूँ
जय गोविन्द गोविन्द गोपाला
जय मुराली मनोहर नंदलाला
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