हरी ॐ........
ईक औंकार को सिमरिऐ, मिट जाऐ सभी कलेश।
विघन विनाशत विघन हरत गणपति श्री गणेश।।
भगवती संग पुजिऐ श्री बह्ममा विषणु महेश।
गुरू दासों का दास हुँ मोरे अंग संग रहो हमेश।।
सरस्वती स्वर दिजिऐ स्वर के साथ ञान।
मै बेसुर बेताल हुँ मैय्या आप करो कल्याण।।
मोरी रखियो लाज गुरू देव देव
मोरी रखियो लाज गुरू देव -2
बाबे मेरे हाल दा महरम तु।
अंदर तु है बाहर तु है मेरे रोम रोम विच तु।।
तु ही ताना तु ही बाना।
सब किछ मेरा तु वे सांईया सब किछ मेरा तु।।
कह हुसेन फकिर सांई दा, मै नाहीं सब तु।।
ख्वाजा जी महाराजा जी -2 तुम बनो गरिब निवास।
अपना कर के राखियो तोहे बाहं पकडे की लाज।।
रह मन संसार मे सबसे मिलिऐ ध्याऐ।
ना जाने कि भेस मे मोहे नारायण मिल जाऐ।।
ञान ध्यान कुछ कर्म ना जाना सार ना जाना तेरी।
सबसे वड़ा धन सतगुरू नानाक जिन कल राखि मेरी।।
जे मै वेखा अमला वले कुछ नहीं पले मेरे।
जे मै वेखां तेरी रहमत वले बल्ले बल्ले।।
हरी ॐ........
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